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कविता

जमीन और जड़

सुमित पी.वी.


उस नाले के दोनों ओर
कई लोग रह रहे थे
उन्हें समझा-बुझाकर
कहीं और जगह
दिलाने का वादा किया
तो वे मान नहीं रहे थे

उन्हें लगता था
कहीं उन्हें मारने का
षड्यंत्र है यह सब।
लाख कोशिश के बाद भी
वे सहमत नहीं हुए।

एक दिन अचानक
बुलडोजर की आवाज
सुनकर बाहर निकल देखा
तो एक सिरे से घर
उखाड़े आ रहे थे
भूस्वामी!

अपनी जगह छोड़ने की पीड़ा
वे क्या जानें?
अपनी जमीन से उखाड़ कर
कहीं और जड़ें
मजबूत कराना आसान नहीं है
पेड़-पौधों के लिए...
आदमी के लिए भी!


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